जालंधर ब्रीज: शहरीकरण को सार्वभौमिक रूप से दुनियाभर की सरकारों के लिए विभिन्न रूपों और आकार में एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक भारत में काफी ज्यादा शहरीकरण हो चुका होगा और देश की शहरी आबादी लगभग दोगुनी बढ़कर 877 मिलियन पहुंचने की संभावना है। पहले से ही, भारत का शहरी क्षेत्र राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है और यह आंकड़ा साल 2030 तक 70 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है।
शहरों के अनुसरण के लिए शहरीकरण का कोई मॉडल नहीं है। हर देश को अपनी जनसांख्यिकी, संस्कृति और सामाजिक-आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम विकल्प को अपनाना होता है। भारत की विशाल आबादी को देखते हुए ऐसा माना जाता है कि शहरीकरण से पैदा होने वाली चुनौतियां ज्यादा गंभीर होंगी। हालांकि, जनसंख्या लाभांश, एक जीवंत लोकतंत्र और मजबूत संस्थागत ढांचे भारत को शहरीकरण के सर्वोत्तम दृष्टिकोण का इस्तेमाल करने का एक रोमांचक अवसर भी प्रदान करते हैं।
2014 से पहले, शहरीकरण का एजेंडा बिजनेस के लेनदेन जैसा था जहां योजनाओं को दूसरे विभागों से अलग साइलो आधारित दृष्टिकोण के तहत लॉन्च किया जाता था। साथ ही, केंद्र सरकार की भूमिका सबसे प्रभावशाली होती थी, जो योजना के हर पहलू को तय करती थी। वैसे तो, योजनाओं को आखिर में शहरी स्थानीय निकाय स्तरों पर लागू किया जाता था लेकिन प्रत्येक परियोजना का मूल्यांकन और अनुमोदन केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय में होता था। इस तरह का दृष्टिकोण योजनाओं के निराशाजनक परिणाम में दिखाई पड़ा। इसके लिए बस एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। साल 2004 से 2014 के बीच 10 वर्षों में, जेएनएनयूआरएम योजना के तहत केवल 8 लाख घरों का निर्माण किया गया था जबकि जून 2015 में लॉन्च की गई पीएमएवाई (शहरी) मिशन के तहत एनडीए सरकार के छह साल से भी कम के कार्यकाल में 1.13 करोड़ घरों को मंजूरी दी गई और 50 लाख से भी ज्यादा घर बनाकर दे दिए गए। बाकी मकान निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।
इस सरकार में क्या सही किया गया? जवाब है सहकारी संघवाद की भावना, जो मोदी सरकार की नीतियों में शासन के दृष्टिकोण का सार रही है। पीएमएवाई (यू) के मामले में, बड़ी संख्या में घरों को मंजूरी देना संभव हुआ क्योंकि हर परियोजना का अब राज्य सरकार के स्तर पर मूल्यांकन और अनुमोदन किया जाता है और केवल केंद्रीय मदद जारी करने के लिए केंद्रीय मंत्रालय के पास आता है।
दूसरा, साइलो आधारित दृष्टिकोण के बजाय, मई 2014 से वर्तमान सरकार ने दुनिया में सबसे व्यापक और नियोजित शहरीकरण कार्यक्रम शुरू किया। इस व्यापक दृष्टिकोण से काफी लाभ मिला है, जैसा कि इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 2004 और 2014 के दौरान शहरी विकास योजनाओं में कुल निवेश केवल 1.57 लाख करोड़ रुपये था, जबकि प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व वाली इस सरकार के केवल छह वर्षों (2015-2021) में यह निवेश सात गुना बढ़कर 11.83 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया।
इस सरकार का शहरीकरण का एजेंडा ‘अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को पहले’ के सिद्धांत पर आधारित है। शहरी मामलों के मंत्रालय के प्रत्येक प्रमुख मिशन के तहत महत्वपूर्ण सामाजिक और लैंगिक उद्देश्य इस तरह से अंतर्निहित हैं कि इसका परिणाम केवल एक घर का निर्माण करना नहीं है। बल्कि, प्रत्येक पीएमएवाई घर लैंगिक सशक्तीकरण का प्रतीक है क्योंकि घर का नाम महिला सदस्य के नाम पर या उसके साथ संयुक्त रूप से होना चाहिए। शौचालय के अनिवार्य प्रावधान ने बहुत कम समय में बालिकाओं की सुरक्षा चिंताओं को दूर कर दिया है, चिंताएं वास्तविक थीं लेकिन वे चुपचाप सहन कर रही थीं।
15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लाल किले की प्राचीर से घोषित स्वच्छ भारत अभियान की आलोचना भी की गई थी। फिर भी, मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब भारत के शहरी परिवर्तन की कहानी सुनाई जाएगी तो स्वच्छता मिशन को भारत के विकास की कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाएगा क्योंकि उस मिशन के माध्यम से लोगों की भागीदारी की ताकत का एहसास हुआ। नौकरशाही की परेशानी, राजनीतिक उपेक्षा और नागरिक सुस्ती सभी को एक ‘जन आंदोलन’ के माध्यम से दूर किया गया, जिसमें उत्साही लोग, युवा और बुजुर्ग सभी एक साथ मिलकर इसे सफल बनाने के लिए आगे आए।
इसी तरह, अमृत (एएमआरयूटी) मिशन ने 500 शहरों में नागरिक बुनियादी ढांचे जैसे पानी और स्वच्छता की समस्या का समाधान किया है। जीवन स्तर में सुधार के लिए साधारण कदम का भी सामान्य नागरिक के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। पहले घटिया कार्यान्वयन और धन की बर्बादी से बुनियादी ढांचे की घोर उपेक्षा की जाती थी। अब ऐसा नहीं है, क्योंकि आधार से लेकर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण तक प्रौद्योगिकी उपकरणों के माध्यम से जवाबदेही तय की जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाभार्थी को धन प्राप्त हो और रियल टाइम में जमीन पर कार्यान्वयन की निगरानी के लिए ड्रोन तकनीक से लेकर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उपकरणों का सहारा लिया जा रहा है।
भारतीय शहरों में नवाचार और उत्कृष्टता की संस्कृति को समाहित करते हुए स्मार्ट सिटीज मिशन ने कई अन्य दिलचस्प और सकारात्मक परिणाम दिए हैं। साक्ष्य आधारित रिपोर्ट है कि जहां भी एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र पूरी तरह से काम कर रहे हैं वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी आई है। जब नागरिकों को मूर्त और अमूर्त रूप से लाभ होता है तो यह निश्चित हो जाता है कि हम सही रास्ते पर हैं।
यह दुखद है कि हमारे शहरों और शहरी गरीबों पर कोविड-19 का भयावह असर हुआ है लेकिन हमारे इन प्रमुख मिशनों के माध्यम से हुए विकास के चलते इसका प्रभाव कुछ हद तक कम था क्योंकि ज्यादा घरों और ज्यादा शौचालयों के निर्माण के साथ ही जमीन पर नागरिकों के लिए ज्यादा सुविधाएं भी मुहैया कराई गईं। आईसीसीसी ने शहर के प्रशासकों को महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक्स की निगरानी और रियल टाइम में कोविड के प्रसार पर नजर रखने में मदद के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अब आगे बढ़ते हुए, सरकार जल जीवन मिशन (शहरी) की शुरुआत करेगी, जिसमें 2.8 लाख करोड़ का खर्च आएगा और यह भारत के सभी शहरी स्थानीय निकायों में सार्वभौमिक रूप से जल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा और 500 शहरों में तरल अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करेगा। देश में ओडीएफ का दर्जा हासिल करने के बाद, यह सरकार अब स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के माध्यम से मल कीचड़ प्रबंधन, अपशिष्ट जल ट्रीटमेंट और अपशिष्ट प्रबंधन में हमारे शहरों की क्षमताओं को मजबूत करना चाहती है, इस पर 1.41 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे।
यह सरकार भारत के शहरीकरण को सतत रूप से विकसित होने के एक अवसर के रूप में देखती है और यह विकास के उसके विजन का एक मूल विषय है। आने वाले वर्षों में शहरी भारत न्यू इंडिया का एक आदर्श उदाहरण होगा।
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