
जालंधर ब्रीज: डेयरी विकास विभाग द्वारा पंजाब राज्य में स्थापित किये गए अपने 9 ट्रेनिंग केन्द्रों के द्वारा ग्रामीण बेरोजगार नौजवानों को अपने घरों में रोज़गार हासिल करने के लिए दो हफ्तों का डेयरी ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाता है, जिसमें हर साल लगभग 6000 बेरोजगार नौजवानों को ट्रेनिंग दी जाती है।
यह जानकारी देते हुए पशु पालन और डेयरी विकास विभाग के मंत्री श्री तृप्त राजिन्दर सिंह बाजवा ने बताया कि इस विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम के अलावा विभाग द्वारा 4 हफ्तों का डेयरी उद्यम ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाया जाता है, जिसमें मौजूदा दूध उत्पादकों को वैज्ञानिक तरीके से डेयरी का किया अपनाने के लिए एडवांस ट्रेनिंग दी जाती है। जिसमें हर साल 1000 शिक्षार्थियों को ट्रेनिंग दी जाती है। उन्होंने बताया कि नया डेयरी यूनिट स्थापित करने हेतु 2 से 20 दुधारू पशुओं की खरीद करने और 17500 रुपए प्रति पशु सामान्य जाति और 23100/- रुपए अनुसूचित जाति के लाभार्थी को वित्तीय सहायता दी जा रही है।
तृप्त राजिन्दर सिंह बाजवा ने और अधिक जानकारी देते हुए बताया कि दुधारू पशुओं को गर्मी, सर्दी, ऊँचे नीचे स्थान और भीड़-भाड़ से बचाना पशु पालकों का पहला फर्ज है, यह तभी संभव हो सकता है अगर पशुओं के रखने वाली जगह साफ़ सुथरी, खुली हवादार हो और पशुओं को अपनी मर्ज़ी से घूमने-फिरने, खाने-पीने और उठने- बैठने की आज़ादी हो। उन्होंने बताया कि यह सारी सहूलतें देने के लिए डेयरी विकास विभाग द्वारा माहिरों की राय से डेयरी शेडों के डिज़ाइन तैयार किये गए हैं।
इस मुताबिक शेड बनाने वाले पशु पालक को 1.50 लाख रुपए तक की सब्सिडी दी जाती है। इन शेडों के डिज़ाइन जो कि गुरू अंगद देव वेटनरी एंड एनिमल साईंस यूनिवर्सिटी लुधियाना और प्रगतिशील दूध उत्पादकों के साथ विचार करके बनाऐ गए हैं जिसमें 10 से 20 पशुओं के लिए डिज़ाइन तैयार किये गए हैं, जिनकी लागत कीमत चार से छह लाख रुपए तक है।
तृप्त बाजवा ने बताया कि आज का युग वैज्ञानिक तकनीकों को बारीकियों से समझने और तन-मन से लागू करने का युग है। हर काम और पेशे की अपनी-अपनी संशोधित तकनीकें होती हैं, जिनको अपनाने से इस पेशे को लाभप्रद बनाया जा सकता है। कामयाब कारोबारी का पहला नुक्ता यही है कि लागत खर्च काबू में रखकर गुणवत्ता भरपूर उपज मंडी में उचित ढंग से अधिक कीमतों पर बेची जाये। आज का डेयरी धंधा भी एक ऐसा धंधा बन चुका है, जिसमें सूचना प्रौद्यौगिकी को पशूधन के प्रबंध, खाद्य ख़ुराक, सेहत सुविधाओं और बेहतर मंडीकरण के साथ जोड़ कर लागत कीमतों के साथ अधिक पैदावार ली जा सकती है। अब दूध उत्पादकों को बेहतर किसान बनने के साथ-साथ बेहतर मैनेजर बनाना पड़ेगा।
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